श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में अखाड़े पर कब्जे को लेकर दो गुटों में हाथापाई

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हरिद्वार।  जिले के कनखल स्थित श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में अखाड़े पर कब्जे और अध्यक्ष पद लेकर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह और श्रीमहंत रेशम सिंह के गुटों के बीच हाथापाई हुई।  बाद में हरकत में पुलिस आई और पंजाब से आए संतो को उठाकर बाहर निकाला। यह विवाद लंबे समय से चल रहा है और न्यायालय में लंबित है।

लंबे समय से चला आ रहा है विवाद

कनखल के निर्मल अखाड़ा में श्रीमंत ज्ञानदेव सिंह और श्रीमहंत रेशम सिंह पक्ष के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। दोनों गुटों के संत अपने-अपने श्रीमहंत को अखाड़े का अध्यक्ष बताते हैं और एक दूसरे को फर्जी बताते आ रहे हैं। यहां तक की दोनों अखाड़ा परिषद भी अलग-अलग गुट के साथ खड़ी है।

सूचना पर पहुंची पुलिस

एक बार फिर रेशम सिंह पक्ष के संत अखाड़ा मुख्यालय पहुंच गए हैं। जिसको ज्ञानदेव सिंह पक्ष के संतों ने विरोध किया हंगामा होने की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची। दोनों तरफ के संतो को समझाकर शांत कराने का प्रयास किया गया। तनाव के मद्देनजर पीएसी भी बुलाई गई। इस बीच दोनों गुटों में गतिरोध बढ़ गया है।

गुरुद्वारे में अरदास करने की जताई थी इच्छा

बता दें कि रेशम सिंह पक्ष के कुछ संत एक दिवंगत संत की अस्थियां गंगा में विसर्जित करने कनखल आए थे। सती घाट पर अस्थियां विसर्जित करने के बाद वे नजदीक स्थित अखाड़ा मुख्यालय पहुंचे और अंदर बने गुरुद्वारे में अरदास करने की इच्छा जताई।

बाहर नहीं आए संत तो बुलाई पुलिस

श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह पक्ष के संतों ने उन्हें अंदर आने की अनुमति दे दी। कई घंटे बाद भी जब पंजाब से आए संत गुरुद्वारे से बाहर नहीं निकले, तब ज्ञानदेव सिंह पक्ष के संतों ने पुलिस को सूचना दी। पंजाब से आए संतों का कहना है कि अरदास 48 घंटे तक चलती है। इसलिए वह इससे पहले गुरुद्वारे से बाहर नहीं जाएंगे चाहे पुलिस ने गोली ही क्यों ना मार दे।

पुलिस और पीएसी है तैनात

सीओ सिटी मनोज ठाकुर ने बताया कि एहतियात के तौर पर पुलिस और पीएसी तैनात की गई है, ताकि शांति व्यवस्था ना बिगड़े। आला अधिकारियों को इस मामले की सूचना दे दी गई है। संतों से बातचीत भी की जा रही है।

बीते जुलाई माह में भी हुआ था विवाद

बीते जुलाई माह में भी यह मामला तूल पकड़ गया था, जब पंजाब से आए संतों ने अखाड़ा मुख्यालय कूच करने का ऐलान किया था। बाद में पुलिस प्रशासन ने समझा-बुझाकर कुछ समय मांगते हुए उन्हें शांत करा दिया था।

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