पीएम मोदी ने व्यापार और निवेश मंत्रियों की G20 मीटिंग को संबोधित करते हुए कहा- एमएसएमई को हमारे निरंतर समर्थन की आवश्यकता है

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नई दिल्ली,  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को व्यापार और निवेश मंत्रियों की जी-20 बैठक (G20 meeting) को वर्चुअली संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि एमएसएमई 60 से 70 प्रतिशत रोजगार के लिए जिम्मेदार है। यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 50 प्रतिशत का योगदान देता है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि हमें उचित मूल्य खोज, शिकायत निवारण तंत्र में उपभोक्ताओं के सामने आने वाली समस्याओं का समाधान करने की जरूरत है।

‘एमएसएमई को हमारे निरंतर समर्थन की आवश्यकता है’

पीएम मोदी ने कहा एमएसएमई को हमारे निरंतर समर्थन की आवश्यकता है। एमएसएमई का सशक्तिकरण सामाजिक सशक्तिकरण में तब्दील हो जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे लिए एमएसएमई का मतलब सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को अधिकतम समर्थन है।

‘डिजिटलीकरण का विस्तार किया, नवाचार को बढ़ावा दिया’

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्विक आशावाद और आत्मविश्वास देखते हैं। भारत को खुलेपन, अवसरों और विकल्पों के संयोजन के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा कि हमने प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाई है, पारदर्शिता बढ़ाई है, डिजिटलीकरण का विस्तार किया है और नवाचार को बढ़ावा दिया है।

‘विश्वास का पुनर्निमाण करना हमारी जिम्मेदारी है’

जयपुर में व्यापार और निवेश मंत्रियों की जी20 बैठक में अपने वर्चुअल संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि G20 में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश में विश्वास का पुनर्निर्माण करना हमारी जिम्मेदारी है। वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के मानचित्रण के लिए एक सामान्य ढांचा बनाने का भारत का प्रस्ताव महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने कहा

‘हम भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यववस्था बनाएंगे’

पीएम मोदी ने कहा- हम लालफीताशाही से लाल कालीन की ओर चले गए हैं और एफडीआई प्रवाह को उदार बनाया है। हम नीतिगत स्थिरता लाए हैं और अगले कुछ वर्षों में भारत को तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

‘ई-कॉमर्स के साथ बढ़ रहीं चुनौतियां’

प्रधानमंत्री ने कहा कि जैसे-जैसे सीमा पार ई-कॉमर्स बढ़ रहा है, चुनौतियाँ भी बढ़ रही हैं। हमें बड़े और छोटे विक्रेताओं के बीच समान प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक रूप से काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमें लचीली, समावेशी वैश्विक मूल्य श्रृंखलाएं बनानी चाहिए, जो भविष्य के झटकों का सामना कर सकें।

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